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Makar Sankranti

Posted by Rahul on January, 10, 2020

मकर संक्रांति

हे सूर्य! हमें भी अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो...

हिंदू धर्म ने माह को दो भागों में बाँटा है- कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। इसी तरह वर्ष को भी दो भागों में बाँट रखा है। पहला और दूसरा दक्षिणायन। उक्त दो अयन को मिलाकर एक वर्ष होता है। मकर संक्रांति के दिन पृथ्वी की परिक्रमा करने की दिशा बदलते हुए थोड़ा उत्तर की ओर ढलता जाता है, इसलिए इस काल को उत्तरायण कहते हैं।

सूर्य पर आधारित हिंदू धर्म में मकर संक्रांति का बहुत महत्व माना गया है। वेद और पुराणों में भी इस दिन का विशेष उल्लेख मिलता है। होली, दीपावली, दुर्गोत्सव, शिवरात्रि और अन्य कई त्योहार जहाँ विशेष कथा पर आधारित हैं, वहीं मकर संक्रांति खगोलीय घटना है, जिससे जड़ और चेतन की दशा और दिशा तय होती है। मकर संक्रांति का महत्व हिंदू धर्मावलंबियों के लिए वैसा ही है जैसे वृक्षों में पीपल, हाथियों में ऐरावत और पहाड़ों में हिमालय।

सूर्य के धनु से मकर राशि में प्रवेश को उत्तरायण माना जाता है। इस के समय को ही मकर संक्रांति कहते हैं। यही एकमात्र है जिसे समूचे भारत में मनाया जाता है, चाहे इसका नाम प्रत्येक प्रांत में अलग-अलग हो और इसे मनाने के तरीके भी भिन्न हों, किंतु यह बहुत ही महत्व का पर्व है।

इसी दिन से हमारी धरती एक नए वर्ष में और सूर्य एक नई गति में प्रवेश करता है। वैसे वैज्ञानिक कहते हैं कि 21 मार्च को धरती सूर्य का एक चक्कर पूर्ण कर लेती है तो इस मान ने नववर्ष तभी मनाया जाना चाहिए। इसी 21 मार्च के आसपास ही विक्रम संवत का नववर्ष शुरू होता है और गुड़ी पड़वा मनाया जाता है, किंतु 14 जनवरी ऐसा दिन है, जबकि धरती पर अच्छे दिन की शुरुआत होती है। ऐसा इसलिए कि सूर्य दक्षिण के बजाय अब उत्तर को गमन करने लग जाता है। जब तक सूर्य पूर्व से दक्षिण की ओर गमन करता है तब तक उसकी किरणों का असर खराब माना गया है, लेकिन जब वह पूर्व से उत्तर की ओर गमन करते लगता है तब उसकी किरणें सेहत और शांति को बढ़ाती हैं।

मकर संक्रांति के दिन ही पवित्र गंगा नदी का धरती पर अवतरण हुआ था। महाभारत में पितामह भीष्म ने सूर्य के उत्तरायण होने पर ही स्वेच्छा से शरीर का परित्याग किया था, कारण कि उत्तरायण में देह छोड़ने वाली आत्माएँ या तो कुछ काल के लिए देवलोक में चली जाती हैं या पुनर्जन्म के चक्र से उन्हें छुटकारा मिल जाता है। दक्षिणायन में देह छोड़ने पर बहुत काल तक आत्मा को अंधकार का सामना करना पड़ सकता है। सब कुछ प्रकृति के नियम के तहत है, इसलिए सभी कुछ प्रकृति से बद्ध है। पौधा प्रकाश में अच्छे से खिलता है, अंधकार में सिकुड़ भी सकता है। इसीलिए मृत्यु हो तो प्रकाश में हो ताकि साफ-साफ दिखाई दे कि हमारी गति और स्थिति क्या है। क्या हम इसमें सुधार कर सकते हैं? क्या हमारे लिए उपयुक्त चयन का मौका है?


स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने भी उत्तरायण का महत्व बताते हुए गीता में कहा है कि उत्तरायण के छह मास के शुभ काल में, जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं और पृथ्वी प्रकाशमय रहती है तो इस प्रकाश में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता, ऐसे लोग ब्रह्म को प्राप्त हैं। इसके विपरीत सूर्य के दक्षिणायण होने पर पृथ्वी अंधकारमय होती है और इस अंधकार में शरीर त्याग करने पर पुनः जन्म लेना पड़ता है।

(यह लेख वेब दुनिया ने लिखा है )



This entry was posted on January, 10, 2020 at 18 : 37 pm and is filed under Festival. You can follow any responses to this entry through the RSS 2.0 feed. You can leave a response from your own site.

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